About us

नगर पालिका परिषद, हाथरस

शासनादेश संख्या 603 दिनांक 04 अगस्त 1984 द्वारा नगर पालिका का सीमांकन किया गया तथा शासनादेश संख्या 743/वी/11-ए-दिनांक 01.05.1960 द्वारा नगर पालिका परिषद, हाथरस प्रथम श्रेणी की नगर पालिका घोषित हुई। वर्तमान में इस परिषद की सीमांतर्गत वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर जनसंख्या 135875 व (2011 की अनुमानित जनसंख्या 143339) तथा नगरीय क्षेत्रफल 8.40 वर्ग किमी0 है। परिषद के निर्वाचित vartman बोर्ड का गठन दिनांक 6 jan 2018 को हुआ जिसमें सदस्यों की संख्या 27 है एव 03 पदेन सदस्य हैं। 

नगर पालिका परिषद, हाथरस

नगर की ऐतिहासिक एवं व्यावसायिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। हाथरस प्रदेश का एक प्रख्यात एवं औद्योगिक व व्यापारिक नगर एवं बृज की लोक संस्कृति का केन्द्र रहा है। हाथरस ने उद्योगों की दृष्टि से नगर को खुशहाली, सम्पन्नता एवं वैभव प्रदान किया है, वही नगर की सांस्कृतिक धरती भी समृद्ध बनी है। फलस्वरूप व्यापारिक ख्याति के साथ रसिया, स्वॉग, झूलना आदि लोक विधाओं ने भी देश के रसियकों का मन मोहा। हाथरस की ऐतिहासिकता पर दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि हाथरस राजदूतों से जाट नरेशों द्वारा ग्रहीत हुआ है और यहॉ के अन्तिम शासक राजा दयाराम के अंग्रेजों के समक्ष समझौता न करके स्वाधीनता के लिए अंग्रेजों की तोपों से संघर्ष किया, आज भी यहॉ स्थित दाऊजी महाराज के मन्दिर के शिखर पर विशाल मौखले इस वीरतापूर्ण कृत्य एवं शीष्र का साक्षी है। विशाल खाई एवं गुम्मद और प्रेरक भूखण्ड के बीच प्रतिवर्ष भाद्रपद माह में दाऊजी महाराज का मेला लगता है। यहॉ एक और भगवान बलराम का मन्दिर है व दूसरी और अतीत संगीन भावना के संदर्भों सहित तहसील के खाली भवन उसी राज युगीन वैभव की स्मृति स्वरूप अवशेष है। तहसील भवन के एक ओर स्थित बलराम मन्दिर तथा उसके निकट दूसरी ओर स्थित प्राचीन मस्जिद इस नगर की साम्प्रदायिक एकता की अनौखी मिशाल है।
इस नगर के नामकरण के सम्बन्ध में अनेकों कीवन्दतीयॉ सुनाई पडती है जिनमें कुछ में भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव की खबर पाकर शंकर जी मॉ पार्वती के साथ उनके दर्शनों की लालसा के साथ चल पडे, मार्ग में मॉ पार्वती को प्यास लगी लेकिन दूर-दूर तक न जल था और ना जलाशय उस समय शंकर जी के हाथ से जल प्रवाहित हुआ उसे उस की संज्ञा देकर और हस्तरत उपभ्रत से ‘‘हाथरस’’ नामकरण हुआ। मॉ पार्वती की विशाल स्थल पर स्मृति स्वरूप हाथरसी देवी का प्राचीन मन्दिर भी अभी स्थित है, कभी यहॉ कुशाण कालीन गुप्त कालीन मूर्तियों का प्रादुभाव था। लेकिन यह कालान्तर में लुप्त होती चली गई। यह स्तर किला क्षेत्र में ही स्थित है। 


हाथरस नगर का दूर दराज से जोडने वाली छोटी व बडी रेलवे लाइनें और ग्रामीण रास्ते आवागमन के सभी सुविधाजनक श्रोत प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त मुख्य मार्गों पर दर्शनीय स्थल जैसे कि बरेली मार्ग पर चौबे वाले महादेव का मन्दिर, बाबरी तथा आगरा तथा मथुरा जाने वाले मार्ग पर तालाब, नगर के मध्य सिटी स्टेशन के पास विशाल गोपेश्वर महादेव का मन्दिर। आगे मथुरा मार्ग पर बौहरे वाली देवी तथा आगरा मार्ग पर चकलेश्वर महादेव तो आगरा अलीगढ मार्ग के छोर पर नहर व बम्बा अपनी सतत जल धारा से नगर को तरतब्य रखने का वरदान दिये हैं। डेढ़ लाख की आबादी वाले इस नगर के बाजार व्यापार उद्योग की ख्याति को यथार्थ अपने नाम के साथ करते हैं। जैसे सर्राफा, हलवाई खाना, लोहट बाजार, गुडिहाई बाजार, खाती खाना अपने व्यावसायिक मण्डी के स्वरूप का स्वतः ही परिचय देते है।
हाथरस के व्यवसाय उद्योग 20 बी शताब्दी के अंत और 21 बी शताब्दी के प्रारम्भ में अपने धर्मोकर्ष के रूप में उर्द्धत हुये। उस समय कपास व रूई का व्यापार प्रगति पर था। इसी समय सेठ फूलचन्द्र बागला की जिनिंग फैक्ट्री स्थापित हुई इसके बाद वर्षो तक सूत, कपास, रूई तथा नील के व्यापार के लिये यह नगर प्रख्यात रहा। इस काल में जिनिंग प्रेस फैक्ट्री तथा तीन सूती मिल लगभग 12000 श्रमिकों को रोजी रोटी देते थे इसी मध्य हाथरस मण्डी को कच्चा माल उपलब्ध होने के कारण तेल मिल और दाल मिल के कारखानों की स्थापना हुई। उस समय कारखानों के दरवाजों तक रेलवे लाइनों का जाल था और लदान की सुविधा पूर्वी बंगाल तक उपलब्ध थी। लेकिन विभिन्न कारणों एवं समस्याओं से ग्रस्त उद्योगों को विफल होना पडा। श्रमिक हाथरस से पलायन कर गये। 
लधु उद्योगों के रूप में पीतल उद्योग काफी पुराना है। उत्कृष्ट कलाकारी इस उद्योग की एक विशेषता थी जो आज भी है। लेकिन कच्चे माल की अनुउपलब्धता के अलावा अन्य आवश्यक सहायता न मिलने के कारण पिछड़ता चला गया, परन्तु यहॉ का हैण्डीक्राफ्ट का सामान आज भी बाहर भेजा जाता है। नगर के बेरोजगारी को दूर करने के लिये इस औद्योगिक अवनति के बाद कोई बड़ा उद्योग नहीं मिला है। अलीगढ मार्ग पर औद्योगिक आस्थान की स्थापना करके छोटे-छोटे उद्योगों के रूप में पीतल, चाकू, साबुन, गलीचे, मुरब्बा, बिल्डिंग, फिटिंग, गारमेन्ट्स, हींग आदि के कार्यो को बढ़ावा मिला है। 




यदि हाथरस के औद्योगिक रूप पर विचार किया जाये तो सभी प्रकार से हाथरस की भूमि प्रत्येक उद्योगों व व्यवसाय के अनुकूल है। उद्योग व व्यापार की दृष्टि से अनेक वस्तुओं के लिये दूर दराज तक हाथरस को ट्रेड मार्क के रूप में इस्तेमाल पर वस्तुओं की विश्वसनीयता पर भरौसा किया जाता है। हाथरस का उद्योग आज भी अवशेष रूप में जीवित है और उसे अभी भी प्रगति प्रदान की जा सकती है। यद्यपि सामान्य उद्योगों की स्थापना पहले और शहरों में नहीं थी वहॉ भी हो चुकी है। नगर हाथरस कच्चे माल, श्रमिक उपलब्धि, जलवायु और रेल की सभी सुविधाओं से परिपूर्ण है। 

अधिशासी अधिकारी
नगर पालिका परिषद, हाथरस।